श्री गायत्री माता की आरती
आरती श्री गायत्री जी की।
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती,
सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की । आरती ।
मानस की शुचि था ल के ऊपर,
देवि की जोति जगै, जहं नीकी । आरती ।
शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा,
बाजै करै पूरी आसहु ही की। आरती ।
जाके समक्ष हमें तिहूं लोक कै,
गद्दी मिले तबहूं लगै फीकी । आरती ।
संकट आवै न पास कबौ तिन्हें,
सम्पदा औ सुख की बनै लीकी । आरती ।
आरती प्रेम सो नेम सों करि,
ध्यावहिं मूरति ब्रह्म लली की । आरती ।